This one is in Hindi (poetic feelings always show up only in mother tongue :P)
कभी कठिनाइओं के बीच अडिग-अचल
तो कभी चिंताओं की चहल-पहल|
भावनाओं के लहरो में बहती जाए इसकी नैया
कभी मामा कंस तो कभी श्रीकृष्ण खिवैया;
पल में क्रोध-परिपूर्ण तो पल में स्नेह का आलिंगन
झूठ और सच्चाई के अंतर्द्वंद्व का यह क्रीडांगन|
श्रीकृष्ण के कृत्यो की कीर्ति कर्न्य कर कृतार्थ हुआ;
पर पग-पग पे बाधा देख प्रण-पथ से यह विचलित हुआ|
द्रुतगामी है, दिक्-भामित है, तो कभी दंभ का दर्पण है;
कभी जल-चन्द्र-प्रतिबिम्ब-सम विचलित होकर भी सौम्य है|
काश यह मन भी कदाचित चंचल न इतना होता
पर फिर शायद इस देह का जीवन, जीवन न होता|
November 29, 2012 at 5:18 am
Hindi is your mothertongue?
November 29, 2012 at 7:14 am
Ya… Sort of…
My mother is from Jharkhand, Father is a bengali